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कादम्बरी / पृष्ठ 163 / दामोदर झा

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34.
जे आज्ञा गन्धर्वराज कहि सबके लय अपना पुर चलले
ततय उत्सवक रंग कहू की निरखय देव ऋषिहु सब अयले।
दुहु गन्धर्व राज अपनहि कर कन्यादान उचित विधि कयलनि
तकर दक्षिणामे सुवर्ण सजि शत शत अश्व मनोहर देलनि॥

35.
ढोल-ढाक गरजय बाहरमे भीतर झालि मृदंग बजै छल
गाबय अप्सर तान रागसँ सजि-धजि सुर-सुन्दरी नचै छल।
सब बनिता व्यवहार पुराबथि सरस मधुर धुनि कविता पढ़ितो
वर कनिंजाके महुअक करबथि आङनमे बटगवनी गबितो॥

36.
भेल चतुर्थीकर्म यथाविधि राति सकल व्रतबन्धन छूटल
पुण्डरीक तीनू जन्मक उल्लसित मनोरथकेर फल लूटल।
चन्द्रापीड़ जन्म दूनू टा जकरा लय सन्तापि बितओलनि
तकरहि पाबि अपन शय्या पर ई के कहत कते की कयलनि॥

37.
विरहक दिन सब जोड़ि भाग दय दश दिनमे संभोग पुरओलनि
नर्मालापे सखी सबहिकें आनन्दामृत पान करओलनि।
एक मास पर उत्सव बेसुधि ससुर बिदा कयलनि दुहु दम्पति
देलनि हाथी-घोड़ा मणिगण सब किछ अपन जेना छल सम्पति॥

38.
पुण्डरीक चन्द्रापीड़ो युवतीजन सङ बाहर दिशि बढ़ले
सभक समादर समुचित विधि कय फाटक पर जा घोड़ा चढ़ले।
सब सरियाती बरियाती बनि हिनक संग चहु दिशि चमकै छल
रत्नाभूषण छलय पहिरने लगय जेना दामिनि दमर्क छल।