भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सीमा पार / सुभाष काक
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:15, 14 नवम्बर 2013 का अवतरण
तब समय की एक अलग
धड़कन थी।
पगडंडी पहाड़ के पार
एक घाटी में आई।
झूमते
विशाल वृक्षों के नीचे
जहाँ खुला स्थान था,
और घूमता झरना था।
अब यह नगर है।
विशाल भवनों के मध्य
पर्यटकों के लिए
एक छोटी धारा है।
पर गगनचुंबी महालय
हवा में लहराते नहीं।
स्तब्धता है
समय के ताल में अब
एक व्याकुलता।
मन क्षोभ और भय के बीच
खिंच रहा है।