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हम्द1 / निदा फ़ाज़ली
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नील गगन पर बैठ
कब तक
चाँद सितारों से झाँकोगे
पर्वत की ऊँची चोटी से
कब तक
दुनिया को देखोगे
आदर्शों के बन्द ग्रन्थों में
कब तक
आराम करोगे
मेरा छप्पर टरक रहा है
बनकर सूरज
इसे सुखाओ
खाली है
प्रार्थना
आटे का कनस्तर
कबनकर गेहूँ
इसमें आओ
माँ का चश्मा
टूट गया है
बनकर शीशा
इसे बनाओ
चुप-चुप हैं आँगन में बच्चे
बनकर गेंद
इन्हें बहलाओ
शाम हुई है
चाँद उगाओ
पेड़ हिलाओ
हवा चलाओ
काम बहुत हैं
हाथ बटाओ अल्ला मियाँ
मेरे घर भी आ ही जाओ
अल्ला मियाँ...!