भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्वामिनी हे बृषभानु-दुलारि / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:46, 3 दिसम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

स्वामिनी हे बृषभानु-दुलारि!
कृष्णप्रिया, कृष्णगतप्राणा, कृष्णा, कीर्तिकुमारि॥
नित्य निकुंजेस्वरि, रासेस्वरि, रसमयि, रस-‌आधार।
परम रसिक रसराजाकर्षिनि, उज्ज्वल-रस की धार॥
हरिप्रिया, अहलादिनि, हरि-लीला-जीवन की मूल।
मोहि बनाय राखु निसि-दिन निज पावन पद की धूल॥