Last modified on 5 दिसम्बर 2013, at 14:04

श्रीराधामाधव जुगल दिय रूप-गुन-खान / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:04, 5 दिसम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

श्रीराधामाधव जुगल दिय रूप-गुन-खान।
अविरत मैं करती रहूँ प्रेम-मगन गुन-गान॥
राधागोबिंद नाम कौ करूँ नित्य उच्चार।
ऊँचे सुर तें मधुर मृदु, बहै दृगन रस-धार॥
करि करुना या अधम पर, करौ मोय स्वीकार।
पर्‌यौ रहूँ नित चरन-तल, करतौ जै-जैकार॥
मैं नहिं देखूँ और कौं, मोय न देखैं और।
मैं नित दे?यौ‌ई करूँ, तुम दो‌उनि सब ठौर॥