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करो प्रभु! ऐसी दृष्टि-प्रदान / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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करो प्रभु! ऐसी दृष्टि-प्रदान।
देख सकूँ सर्वत्र तुम्हारी सतत मधुर मुसकान॥
हो चाहे परिवर्तन कैसा भी-अति क्षुद्र, महान।
सुन्दर-भीषण, लाभ-हानि, सुख-दुःख, मान-‌अपमान॥
प्रिय-‌अप्रिय, स्वस्थता-रुग्णता, जीवन-मरण-विधान।
सभी प्राकृतिक भोगों में हो भरे तुम्हीं भगवान॥
हो न उदय उद्वेग-हर्ष कुछ, कभी दैन्य-‌अभिमान।
पाता रहूँ तुम्हारा नित संस्पर्श बिना-‌उपमान॥