Last modified on 17 नवम्बर 2007, at 20:00

प्रिय मेरे गीले नयन बनेंगे आरती! / महादेवी वर्मा

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:00, 17 नवम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महादेवी वर्मा |संग्रह=सांध्यगीत / महादेवी वर्मा }} प्र...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

प्रिय मेरे गीले नयन बनेंगे आरती!

श्वासों में सपने कर गुम्फित,
बन्दनवार वेदना- चर्चित,
भर दुख से जीवन का घट नित,
मूक क्षणों में मधुर भरुंगी भारती!

दृग मेरे यह दीपक झिलमिल,
भर आँसू का स्नेह रहा ढुल,
सुधि तेरी अविराम रही जल,
पद-ध्वनि पर आलोक रहूँगी वारती!

यह लो प्रिय ! निधियोंमय जीवन,
जग की अक्षय स्मृतियों का धन,
सुख-सोना करुणा-हीरक-कण,
तुमसे जीता, आज तुम्हीं को हारती!