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वे बोलते हैं / कुमार विजय गुप्त
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वे बोलते हैं
वे अच्छा बोलते हैं
वे गोल-गोल बोलते हैं
वे तोल-तोल बोलते हें
वे रस घोल-घोल बोलते हैं
वे रहस्य खोल-खोल बोलते हैं
वे चुनींदे शब्दों में बोलते हैं
वे अलंकृत वाक्यों में बोलते हैं
वे लच्छेदार भाषा में बोलते हैं
वे सम्मोहक वाणी में बोलते हैं
वे जब बोलते हैं तो घुंआंधार बोलते हैं
वे इसीलिए भी बोलते अच्छा हैं
कि बोलने के सिवा उन्होंने किया ही क्या हैं!