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जुगाडू कवि / कुमार विजय गुप्त
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जुगाड़ लगाकर
कविता लिखते हैं
जुगाड़ लगाकर
पत्रिकाओं में छपते हैं
जुगाड़ लगाकर
मंचों पे चढ़ जाते हैं।
जुगाड़ लगाकर
वाह-वाह करवाते हैं
जुगाड़ लगाकर
पुस्तक प्रकाशित करवाते हैं
जुगाड़ लगाकर
समीक्षाएँ लिखवाते हैं
जुगाड़ लगाकर
पुरस्कृत भी हो जाते हैं
और जो कवि जुगाड़ू नहीं हैं
मुंह ताकते रह जाते हैं