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हरो अभिमान, मिटा दो मान / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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हरो अभिमान, मिटा दो मान, दान दो विनय, महादानी!
हरो अजान, मिटा दो शान, बना दो मुझे सत्य-जानी॥
मिटें सब पाप, सकल संताप, दिखा दो मुझे रूप अपना।
चराचर अग-जगमें तुम एक सत्य अति, शेष सभी सपना॥
दुःख-सुख सभी तुम्हारे रूप, तुम्हीं छाये सबमें सर्वत्र।
देख पाऊं मैं सबमें तुम्हें, जन्ममें यत्र, मृत्युमें तत्र॥
तुम्हें भूलूँ न कभी मैं नाथ! तुम्हीं बन रहो चिा-मन-बुद्धि।
तुम्हीं बन जाओ ’मैं’, मैं रहूँ न कुछ भी पृथक्, परम हो शुद्धि॥