माँगी-चाँगी अनले महादेव सूपा भरी धान हे।
अरी हो, बाघ-छाला देहले पसारी, बछहां बएला खा गइले।।१।।
अरे हो, अदहन दीहले चढ़ाई,
अरी हो, अइसन नगरिया केलोग पइंच न दिहलै।।२।।
अरे हो, अइहन दिहलें हो उतारी, गउरा मने-मने झउखेले।
अरी हो, सांझ बेरी अइहें महादेव, केथी लेके जेंवाइब।।३।।
केथी चढ़ बइठल गउरा मने-मन झउखेले।।४।।
अरे सोनवा के बनल सिंहासन, रुपवे मढ़ावल
अरी हो, तेही पर चढ़ी गउरा, मने-मन झउखेले।।५।।