♦ रचनाकार: अज्ञात
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दिल की राम हमारी जानें
मित्र झूठ न मानें
हम तुम लाल बतात जात ते, आज रात बर्रानें
सा परतीत आज भई बातें, सपनेन काए दिखानें ?
ना हो, हो, देख लेत हैं, फूले नईं समानें
भौत दिनन से मोरो ईसुर तुमें लगौ दिल चानें
भावार्थ
हमारे मन की बात तो राम ही जानते हैं । मित्र, हमारी बात को झूठ न समझें । आज रात को ही हमने यह सपना
देखा है कि हम उनसे बात कर रहे हैं । तब हमें यह अन्दाज़ हुआ कि सपना हमने क्यों देखा ? हम उन्हें यहाँ-वहाँ
किसी न किसी तरह देख कर ख़ुश होते रहते हैं न, इसलिए अब वे हमें सपने में भी दिखाई देने लगी हैं । अरे ईसुरी,
मेरा दिल उन्हें बहुत दिनों से चाहता है ।