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कबीर : एक ग़ज़ल / उद्‌भ्रान्त

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हिंदू की मुसलमान की आवाज है कबीर
धड़कन में जो बजता है ऐसा साज है कबीर
नफरत के परिंदों से आसमान भर गया
ऐसे परिंदों के लिए तो बाज है कबीर
जिन मुगलों ने लूटा था सरेआम देश को
उनके लिए ऐ दोस्त! रामराज है कबीर
अब छा गए मसाइल चारों ओर दोस्तों!
क्यों फिक्र करो आप - राजकाज है कबीर
चीजों की कीमतें तो आसमान छू रहीं
मुफलिस की जिंदगी के लिए प्यार है कबीर