Last modified on 3 जनवरी 2014, at 15:48

मैंने कभी न चाहा तुमको / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:48, 3 जनवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मैंने कभी न चाहा तुमको, तुमने चाहा बारंबार।
बिना बुलाये ही आ हियमें, दर्शन दिये, किया अति प्यार॥
नित आदरके बदले तुमने मुझसे पा‌ई नित दुतकार।
दूर चले जानेपर मुझको खींच लिया नित भुजा पसार॥
‘लौटो, उस पथपर मत जा‌ओ’-कहा कानमें कितनी बार।
तब भी चला गया, लौटानेको तुम दौड़े प्रिय! हर बार॥
चिर अपराधी, पापीका तुमने हँस उठा लिया सब भार।
मेरी निज-निर्मित विपदासे गोद उठाकर लिया उबार॥