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मैंने कभी न चाहा तुमको / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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मैंने कभी न चाहा तुमको, तुमने चाहा बारंबार।
बिना बुलाये ही आ हियमें, दर्शन दिये, किया अति प्यार॥
नित आदरके बदले तुमने मुझसे पाई नित दुतकार।
दूर चले जानेपर मुझको खींच लिया नित भुजा पसार॥
‘लौटो, उस पथपर मत जाओ’-कहा कानमें कितनी बार।
तब भी चला गया, लौटानेको तुम दौड़े प्रिय! हर बार॥
चिर अपराधी, पापीका तुमने हँस उठा लिया सब भार।
मेरी निज-निर्मित विपदासे गोद उठाकर लिया उबार॥