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हे निर्गुण! हे सर्वगुणाश्रय! / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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हे निर्गुण! हे सर्वगुणाश्रय! हे निरुपम! हे उपमामय!
हे अरूप! हे सर्वरूपमय! हे शाश्वत! हे शान्तिनिलय!॥
हे अज! आदि! अनादि! अनामय! हे अनन्त! हे अविनाशी।
हे सच्चित्‌‌-‌आनन्द, जानघन, द्वैतहीन, घट-घटवासी॥
हे शिव, साक्षी, शुद्ध, सनातन, सर्वरहित, हे सर्वाधार!
हे शुभ मन्दिर, सुन्दर, हे शुचि, सौय, सायमति, रहित-विकार!॥
हे अन्तर्यामी, अन्तरतम, अमल, अचल, हे अकल, अपार!
हे निरीह, हे नरनारायण, नित्य, निरजन, नव, सुकुमार!॥
हे नव नीरद-नील, नराकृति, निराकार, हे नीराकार!
हे समदर्शी! संत सुखाकर, हे लीलामय प्रभु साकार!॥
हे भूमा, हे विभु, त्रिभुवनपति, सुरपति, मायापति, भगवान!
हे अनाथपति, पतित-‌उधारन, जन-तारन, हे दयानिधान!॥
हे दुर्बलकी शक्ति, निराश्रयके आश्रय, हे दीनदयाल!
हे दानी, हे प्रणतपाल, हे शरणागतवत्सल, जनपाल!॥
हे केशव! हे करुणा-सागर! हे कोमल, अति सुहृद महान!
करुणाकर अब उभय अभय चरणोंमें हमें दीजिये स्थान॥
सुर-मुनि-वन्दित कमला-नन्दित चरण-धूलि तव मस्तक धार।
परम सुखी हम हो जायेंगे, होंगे सहज भवार्णव-पार॥