भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कर मुरली, कटि काछनी / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:03, 6 जनवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कर मुरली, कटि काछनी, कलित कमल-मुख-नैन।
कृष्ण कलेवर, नीलमनि सरस सकल सुख-‌ऐन॥
बिहरत बृंदा-बिपिन बर करषत मन बरजोर।
नित नूतन लीला ललित करत भुवन-मन-चोर॥
बरसावत रस-‌अमिय मधु, जन-जन करत निहाल।
ठाढ़े गो-तन तनु दि‌एँ गो-प्रेमी गोपाल॥