भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जुगल बर परम मधुर रमनीय / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:15, 6 जनवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जुगल बर परम मधुर रमनीय।
सहज मार-रति-मद-मर्दन छबि ललित, कलित, कमनीय॥
बदन-कमल नित सहज प्रड्डुल्लित, सरस मधुर मुसुकान।
बरबस हरत मुनींद्र बिजित-मन बीतराग तपवान॥