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लता-निकुज मध्य माधव / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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लता-निकुज मध्य माधव धर नटवर वेश रहे सुविराज।
विधुबदनी पिय-हियकी रानी राधा रही अङङ्कमें राज॥
निरख मुख-कमल मधुप बने हरि-नयन कर रहे मधु-रस-पान।
प्रेम मधुर पुलकित तन, विगलित हृदय, रसिक रसराज महान॥