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रतनभूमि पर चलत बकैयाँ / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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रतनभूमि पर चलत बकैयाँ।
चकित भये अति कान्ह बिलोकत निज मुख-पंकजकी परछैयाँ॥
निज अनुहार निहारि सखा इक, पकरन हेतु पसारी बैयाँ।
पकरि न सके, सखेद हेरि जननी-मुख रोवन लगे कन्हैया॥