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भूषन-बसन सजाय सबिधि / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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भूषन-बसन सजाय सबिधि मैया मुरली कर दीनी।
कमलनैन ने कर्यौ कलेऊ, चलिबै की मन कीनी॥
मैया कह्यौ-’लाल मेरे तुम बहुत दूर जिन जइयौ।
साँढ-साँप-बीछिनि तें लाला ! दूर डरत ही रहियौ’॥
सूधे-से हामी भर, तुरतहि आँगन-बाहर भागे।
कारौ नाग देखि, तहँ, तातें करन अचगरी लागे॥
पाछे-पाछे आय रही ही मैया नेह-भरानी।
विषधर भुजँग निकट लाला कौं देखत ही डरपानी॥
दौरि हटकि धीरे तें नेह-भरे मन लगी डरावन।
कोमल अँगुरिन पकरि कान दहिनौ लागी धमकावन॥
अचरज भरे डरे मन लाला अपराधी-से ठाढ़े।
मैया च्यौं निरदोष मोय डरपावति, सोचत गाढ़े॥
लोकपाल काँपत जा के डर, अखिल भुवन के स्वामी।
डरपत लीला करत स्वयं वे भक्त-प्रेम-अनुगामी॥
वत्सलता परिपूरित मैया-हिय कैसो सुचि पावन।
देखत फन उठाय फनि निज लीला सुललित मन-भावन॥