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विडम्बना / उमा अर्पिता

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अतीत के मधुर क्षण
जब--
आँधी की तरह
हमें झकझोर देते हैं, तब
हम दोनों एक-दूसरे पर
शिकायतों और गालियों की
बौछार शुरू कर देते हैं,
और--
अपने-अपने घावों को
तीखे नाखूनों से सहलाने लगते हैं,
हमने कई बार
उस क्षण के
अभिशाप को कोसा है, जब
हम और तुम मिले थे, पर
हर अगले क्षण
प्रतिनियम के अनुसार
हमने तुम्हें अपनाया है
और तुम्हारे चेहरे की
गहराइयों में
उन घटनाओं को ढूँढ़ा है, जो
न जाने कब
मन की अतल गहराइयों में
जा छिपी थीं...
निश्चिंतता को
बाँहों में समेटने की आस्था
अतीत के कुरेदते ही
बचकानी प्रतीत होने लगती है,
और हम स्वयं को
बरसों पुराने इतिहास में प्रतिपादित
असभ्य मनुष्यों के
घेरे में ला पटकते हैं
यह संबंध, जो कभी
अमर बेल की भाँति
फैल चुके हैं, इनसे
मुक्ति पाना आसान नहीं!
फिर क्यों नहीं
हम-तुम
सहज होकर जी पाते?
सुलभ होकर मिल पाते?