भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्राण / इष्टदेव सांकृत्यायन
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:06, 24 फ़रवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इष्टदेव सांस्कृत्यायन }} {{KKCatNavgeet}} <poe...' के साथ नया पन्ना बनाया)
माचिस की डिब्बी
डिब्बी में तीली
बाहर-भीतर की यह
आदत ज़हरीली।
सिकुड़ी-सी
लगतीं है
इस घर में आँतें
चौखट के बाहर हैं
समता की बातें
मूल्यों का कैसे
निर्वाह करें बोलो
अब है उठान कम
पर आवक खर्चीली?
एक अदद प्राण और
छः-छः दीवारें
अफनाएँ अक्सर-हम
पर किसे पुकारें?
तेजी का झोंका औ’
मंदी का दौर
भर आईं फिर-फिर से
आँखें सपनीली।