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सरबस छीन लै गयौ मेरौ वो / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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सरबस छीन लै गयौ मेरौ वो लंपट अति धूत।
परम चतुर ठग लंगर छलिया वो जसुमति कौ पूत॥
प्याय रूप-मद मधुर मोय मादक कीन्ही बेभान।
लूट लई, कीन्ही मनमानी ता पाछै सैतान॥
अब का करौं, कहौं का सौं, कछु रह्यौ न मेरे पास।
मन-मति-गति-रति लूटि कितव मोहि दई दासता खास॥
अब तो हौं नहिं रही आपु में, सभी अपनपौ लूट्यौ।
घुली-मिली सबरी मैं वा सँग, सब सौं नातौ टूट्यौ॥