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एक तुम्हारे सिवा न राधे / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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एक तुम्हारे सिवा न राधे! अन्य किसीकी चाह।
बिगड़े-सुधरे, उजड़े-बने न कुछ मुझको परवाह॥
रहो पास तुम सदा, रहूँ मैं सदा तुम्हारे पास।
समझो तुम चाहे निज प्रियतम या समझो निज दास॥
मिले रहें हम, सब स्थितियोंमें बना रहे संयोग।
देह कहीं भी रहे, न हो पर अपना कभी वियोग॥
इतने दूर द्वार का-व्रज, पर रहते हम नित संग।
कभी नहीं हटते, न बदलता पक्का प्यारा रंग॥