कविता-2 / निवेदिता

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तुम्हारा साथ वैसा ही है जैसे
रोटी का होना या भूख का लगना
भूख है तो धरती है
धरती है तो रोटी है
रोटी है तो प्यार उगता रहेगा हमारे खेतों में
प्यार है तो धरती बची रहेगी
और धरती की उष्मा भी
प्यार खेतों में धान रोपने की तरह है
प्यार हरी घास है जो हर
भीगी सतह पर उग आती है

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