भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुबह की बयार / प्रेमशंकर रघुवंशी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:23, 12 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमशंकर रघुवंशी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पन्ना बनाया)
रात की गाढ़ी नींद से
बासे हो चुके बदन में
ताज़गी भरती
सुबह की बयार
ओस की आभा से नहलाती है
फिर अरुणोदय के गुनगुने हाथों से
तन-मन को अँगोछती
अगले दिन
आने का वचन देकर
तेज़ी से चली जाती है ।