Last modified on 12 मार्च 2014, at 00:51

हाँ, सिर्फ़ हाँ होता / प्रेमशंकर रघुवंशी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:51, 12 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमशंकर रघुवंशी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जहाँ-जहाँ भी
खड़ा होता हाँ

अखण्ड प्रतीक की तरह
पूरा का पूरा साबुत होता

हाँ, सिर्फ़ हाँ होता
सिवाय इसके नहीं होता कुछ

अब बराय मेहरबानी
यह मत पूछना
कि वह

अलग-अलग
जगहों पर
क्यों क्या होता है !!