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पुस्तकें / जयप्रकाश कर्दम

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पुस्तकों, तुम उदास मत होवो
उनकी बेरूखी पर
जिनको शिक्षित और सभ्य बनाने में
अपना पूरा वजूद लगाया है तुमने
पुस्तकों, तुम दुखी मत बनो कि
वफादार दोस्त और मार्गदर्शक बनकर
जिनका साथ निभाया तुमने
सालों साल
उतर गयी थीं गहरे तक
जिनकी जिंदगी में
आज उन्हीं के लिए हो गयी हो तुम
उपेक्षित
नहीं है तुम्हारे लिए जगह
उनके साफ-सुथरे घरों में
शो-पीस बनाकर रखी जा रही हो तुम
या कैद करके रखी जा रही हो
कम्प्यूटर में
पुस्तकों, तुम आंसू मत बहाओ,
कि नकारा जा रहा है तुम्हारा अस्तित्व
कमी नहीं है तुम्हें प्यार करने वालों की
तुम्हारी तरह उपेक्षित बहुत से लोग,
कम्प्यूटर, लेपटॉप या टेबलेट नहीं हैं जिनके पास,
तैयार हैं तुम्हें अपना बनाने को
वे तुम्हारा साथ चाहते हैं
तुमसे बातें करना चाहते हैं
पुस्तकों, तुम हमारे घरों में आओ,
सम्मान से रहोगी तुम हमारे घर में।