भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कब तक / जयप्रकाश कर्दम

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:35, 20 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयप्रकाश कर्दम |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कब तक रोती रहेंगी आंखें
कब तक आखिर कब तक
कब तक घुटती रहेंगी सांसें
कब तक आखिर कब तक?

दलित रूप में जन्म लिया
जब से हमने धरती पर
नित्य अनादर, घृणा का विष
पीते आए अब तक।

नंगे तन, भूखे पेट लिए
कैसे जग संग चल पाते
पिछड़ेपन का यह दंश पीढियां
सहेंगी कितना, कब तक?