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तमन्ना / जयप्रकाश कर्दम

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चाण्डाल चूहड़े चमार तो सब कुछ हुए मगर
इंसान नहीं इस देश में माना किए जो लोग
सदियों से बेहतरी की तमन्ना लिए हुए
जिल्लत के इस ज़हर को कब तक पीएंगे और।
कहते हैं सब इंसानियत इंसान की है जात
इंसानियत का इस गली देखा नहीं है ठौर।
करते रहे हैं आज तक जो बेहिसाब जुल्म
कैसे करें यकीं कि वे अब बन गए हैं और।
लुटती रहेंगी अस्मतें मरते रहेंगे लोग
जब तक रहेगी हाथ में इन नाजियों के डोर।
पतित तिरस्कृत रहेंगे शोषित, नीच अछूत
चलता रहेगा जब तलक यहां जातियों का जोर।
उठो, झटक कर फेंक दो ये दासता की बेड़
समता और सम्मान की अगर चाहते हो भोर।