त्रिकालदर्शी / मन्त्रेश्वर झा
जे क्यो कहबैत अछि त्रिकालदर्शी
से पहिने देखैत अछि भूत तखन भविष्य
आ अन्त मे वर्तमान
अर्थात् प्रमुख भेल भूत आ गौण वर्तमान
जे नेना मे देखलहुँ, सिखलहुँ सैह भेल भूत
जे आइ बजरि रहल अछि से वर्तमान,
आ जे काल्हि गुजरत सैह भेल भविष्य
कालक ई विभाजन थिक
मात्र लोटा सँ समुद्रके नपबाक प्रयास
आ व्यक्ति व्यक्तिक दृष्टि
एहिना घटैत रहैत अछि अनायास
तहिना होइत रहैत अछि
नव पुरानक उत्थर उद्दंड विवाद
खेमा खेमाक बनैत अछि अनर्गल प्रतिमान
विधा विधा के बेकछाओल उपाख्यान
मूल थिक आनंदक अभिव्यक्ति
हित सहित साहित्यक अनुरक्ति
हित सहित साहित्यक अनुरक्ति
त्रिकालक सीमा भटकैत रहैत अछि
आइ काल्हि आ परसू मे
कि भिनसर, दोपहरिया कि साँझ मे
मूल थिक प्रकृतिक रासलीला
शाश्वतक अनवरत अनुकृति
चिरन्तक निरन्तर अन्वेष
अकाल दर्शनक प्रयास आ आवेश।