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चिट्ठियाँ तारन्ता बाबू के नाम-8 / नाज़िम हिक़मत
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मुसोलिनी बहुत बक-बक करता है तारन्ता-बाबू,
आपोंआप
- दोस्तों के बिना
- बच्चे के समान
जो फेंक दिया गया हो अंधेरी रात में ।
बर्राता
- और जाग पड़ता अपनी ही आवाज़ से
सुलगता भय से
- दहकता हुआ ख़ौफ़ से,
बड़बड़ाता लगातार !
वह बहुत ज़्यादा बोल रहा है तारन्ता-बाबू
क्योंकि
- वह बेहद डरा हुआ है