भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चिट्ठियाँ तारन्ता बाबू के नाम-8 / नाज़िम हिक़मत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: नाज़िम हिक़मत  » संग्रह: चलते फ़िरते ढेले उपजाऊ मिट्टी के
»  चिट्ठियाँ तारन्ता बाबू के नाम-8

मुसोलिनी बहुत बक-बक करता है तारन्ता-बाबू, आपोंआप

दोस्तों के बिना
बच्चे के समान

जो फेंक दिया गया हो अंधेरी रात में । बर्राता

और जाग पड़ता अपनी ही आवाज़ से

सुलगता भय से

दहकता हुआ ख़ौफ़ से,

बड़बड़ाता लगातार ! वह बहुत ज़्यादा बोल रहा है तारन्ता-बाबू क्योंकि

वह बेहद डरा हुआ है


अंग्रेज़ी से अनुवाद : सोमदत्त </poem>