भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आवरण के भीतर... / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:21, 1 अप्रैल 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
आवरण के भीतर है एक आवरण और
भीतर के भीतर है एक आवरण और
भीतर के भीतर के भीतर है
एक आवरण और
निर्विकार निरावरण दर्पण का,
जिसमें सब कूदते समाए चले जाते हैं।