भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नदी की यात्रा / नीरजा हेमेन्द्र

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:20, 1 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरजा हेमेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोहरे को चीर कर
दृष्टिगत् होते
उबड़-खाबड़/पथरीले
ये चिर परिचित पथ
स्नेह-रिक्त पाषाण/निष्ठुर
रौंदती है
सरस्वती, अब सुरसतिया नही रही
लहराती पताकाओं, बैनरों के
छद्म शब्द
शब्दों के अर्थ, बुने जाल
वह भाँप लेती है
सिहरती है, लरजती है
दृढ़ निश्चय
मार्ग से न डिगने का
सरस्वती होती सुरसतिया
पहाड़ी नदी-सी
मार्ग में आये पत्थरों को
लुढ़काती बहाती
नये मार्ग का सृजन
निरन्तरता... अबाध...
ये यात्रा है पहाड़ी नदी की
अन्तहीन
ध्वनि कल... कल... कल...