मंगल-वर्षा / भवानीप्रसाद मिश्र
पीके फूटे आज प्यार के, पानी बरसा री|
हरियाली छा गयी, हमारे सावन सरसा री|
बादल आये आसमान मे,धरती फूली री,
अरी सुहागिन, भरी मांग में भूली -भूली री,
बिजली चमकी भाग सखी री, दादुर बोले री,
अंध प्राण सी बहे, उड़े पंछी अनमोले री,
छन-छन उडी हिलोर, मगन मन पागल दरसा री |
पीके फूटे आज प्यार के, पानी बरसा री |
फिसली-सी पगडण्डी,खिसली आँख लजीली री,
इन्द्र-धनुष रंग रंगी, आज मै सहज रंगीली री,
रुनझुन बिछिया आज, हिला-डुल मेरी बेनी री,
ऊँचे-ऊँचे पेंग, हिंडोला सरग -नसेनी री,
और सखी सुन मोर! बिजन वन दीखे घर-सा री|
पीके फूटे आज प्यार के, पानी बरसा री|
फुर-फुर उड़ी फुहार अलक दल मोती छाये री,
खड़ी खेत के बीच किसानिन कजरी गाये री,
झर-झर झरना झरे ,आज मन प्राण सिहाये री,
कौन जन्म के पुण्य कि ऐसे शुभ दिन आये री,
रात सुहागिन गात मुदित मन साजन परसा री|
पीके फूटे आज प्यार के, पानी बरसा री|