भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हम सब गाएँ / भवानीप्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:32, 1 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भवानीप्रसाद मिश्र |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पन्ना बनाया)
रात को या दिन को
अकेले में या मेले में
हम सब गुनगुनाते रहें
क्योंकि गुनगुनाते रहे हैं भौंरे
गुनगुना रही हैं मधुमक्खियाँ
नीम के फूलों को
चूसने की धुन में
और नीम के फूल भी महक रहे हैं
छोटे बड़े सारे पंछी चहक रहे हैं|
क्या हम कम हैं इनसे
अपने मन की धुन में
या रूप में या गुन में
सन गाएँ सब गुनगुनाएँ
झूमे नाचे आसमान सिर पर उठाएँ!