भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धमकियों से डर न जाए आईना / फ़रीद क़मर

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:29, 3 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़रीद क़मर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGha...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धमकियों से डर न जाए आईना
सच से फिर मुकर न जाए आईना

पत्थरों का इक हुजूम है उधर,
कह दो कि उधर न जाए आईना

डर ये है कि झूट सच की जंग में,
टूट कर बिखर न जाए आईना

सैकड़ों क़यामतें हैं राह में,
कह दो आज घर न जाए आईना

पै-बा-पै हक़ीक़तों की ज़र्ब को,
सहते सहते मर न जाए आईना

जब कहेगा सच कहेगा, इसलिए
नज़रों से उतर न जाए आईना

चाँद शर्मसार होगा बे सबब,
आज बाम पर न जाए आईना