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धमकियों से डर न जाए आईना / फ़रीद क़मर
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धमकियों से डर न जाए आईना
सच से फिर मुकर न जाए आईना
पत्थरों का इक हुजूम है उधर,
कह दो कि उधर न जाए आईना
डर ये है कि झूट सच की जंग में,
टूट कर बिखर न जाए आईना
सैकड़ों क़यामतें हैं राह में,
कह दो आज घर न जाए आईना
पै-बा-पै हक़ीक़तों की ज़र्ब को,
सहते सहते मर न जाए आईना
जब कहेगा सच कहेगा, इसलिए
नज़रों से उतर न जाए आईना
चाँद शर्मसार होगा बे सबब,
आज बाम पर न जाए आईना