भूल गया मैं अन्य सभी कुछ, केवल एक तुम्हारी याद।
राधे! एक तुम्हीं हो मेरा परमानन्द बिना मर्याद॥
एक तुम्हारी प्यारी स्मृतिमें डूबा रहता है नित चिा।
तुम ही प्राण-प्राण हो मेरी, लोभनीय अति तुम ही विा॥
अनुभव करता मैं प्रतिपल ही-कभी नहीं तुम रहती दूर।
सदा मिली ही रहती हो तुम अणु-अणु कण-कणमें भरपूर॥
कहीं रहूँ मैं, कभी नहीं हो पाता तुमसे तनिक वियोग।
बना हुआ है, बना रहेगा, निर्मल नित्य सरस संयोग॥