भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारी स्मृति नित बन साकार / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:18, 3 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हारी स्मृति नित बन साकार।
चिापर रहती मधुर सवार॥
दुःख-सुख देती उभय अपार।
अनिर्वचनीय सु-रस-‌आगार॥
तुम्हारा मधुर समर्पण-भाव।
तुम्हारा संयम शील-स्वभाव॥
दूसरेपनका निपट अभाव।
सदा उपजाता नव-नव चाव॥
बना देता अविलब विदेह।
भरा नेत्रोंमें पावन स्नेह॥
सदा बरसाता सुखका मेह।
सरस नित ही रखता मन-देह॥