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तुम्हारी स्मृति नित बन साकार / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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तुम्हारी स्मृति नित बन साकार।
चिापर रहती मधुर सवार॥
दुःख-सुख देती उभय अपार।
अनिर्वचनीय सु-रस-आगार॥
तुम्हारा मधुर समर्पण-भाव।
तुम्हारा संयम शील-स्वभाव॥
दूसरेपनका निपट अभाव।
सदा उपजाता नव-नव चाव॥
बना देता अविलब विदेह।
भरा नेत्रोंमें पावन स्नेह॥
सदा बरसाता सुखका मेह।
सरस नित ही रखता मन-देह॥