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देह-प्राण, मन-बुद्धि / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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देह-प्राण, मन-बुद्धि, अहं-मम-सभी समर्पणकर मैं आज।
तुमको वरण कर रही केवल, हे वरणीय परम वरराज॥
तुम्हीं सभी कुछ, सब कुछके सब, मैं नित निष्किचन निस्तव।
सत्-सौन्दर्य दानकर तुम ही मुझे सजा लो, हे सर्वस्व॥