भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देउँ कहा तुम कहँ स्याम सुजान / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:23, 3 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)
देउँ कहा तुम कहँ स्याम सुजान!
तुम ही एकमात्र धन मेरे, सरबस-जीवन-प्रान॥
मन मेरौ इक हुतौ मलिन, मल भर्यौ दोष-आगार।
काम-क्रएध-मोह-मद-ममता कौ पूरौ भंडार॥
सोऊ हरि! तुम ने हरि लीन्हौ, बच्यो न कछु मो पास।
तुम ही बस्तु लैनहारे तुम, तुम ही दाता खास॥