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दे‌उँ कहा तुम कहँ स्याम सुजान / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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दे‌उँ कहा तुम कहँ स्याम सुजान!
तुम ही एकमात्र धन मेरे, सरबस-जीवन-प्रान॥
मन मेरौ इक हुतौ मलिन, मल भर्‌यौ दोष-‌आगार।
काम-क्रएध-मोह-मद-ममता कौ पूरौ भंडार॥
सो‌ऊ हरि! तुम ने हरि लीन्हौ, बच्यो न कछु मो पास।
तुम ही बस्तु लैनहारे तुम, तुम ही दाता खास॥