भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्षणभर मुझे उदास देख / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:17, 3 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्षणभर मुझे उदास देख जो कभी प्राणप्रिय! पाते।
सारा मोद भूल तुम, प्यारे! अति व्याकुल हो जाते॥
कभी किसी कारण जब मेरे नेत्र-कोण भर आते।
तब तुम अति विषण्ण हो, प्यारे! आँसू अमित बहाते॥
कभी लानताकी छाया यदि मेरे मुखपर आती।
लगती देख धडक़ने, प्रिय! तत्काल तुम्हारी छाती॥
मेरे मुख मुसकान देख तुमको अतिशय सुख होता।
हो आनन्द-मग्र अति, मन तब सारी सुध-बुध खोता॥
मुझको सुखी देखने-करनेको ही प्रतिपल, प्यारे!
होते पुण्य-विचार मधुर तव, कार्य त्यागमय सारे॥
मेरा सुख-दुख तनिक तुम्हें अतिशय है सुख-दुख देता।
मेरा मन नित इन पावन भावोंसे अति सुख लेता॥
दिया अमित, दे रहे अपरिमित, देते नित्य रहोगे।
सहे सदा अपमान-‌अवजा, आगे सदा सहोगे॥
किया न प्यार कभी सच्चा, मैंने निज सुख ही देखा।
निज सुख-हेतु रुलाया, कभी हँसाया किया न लेखा॥
दे न सकी मैं तुम्हें कभी कुछ सुख-सामग्री को‌ई।
निज मन-‌इन्द्रिय-तृप्ति हेतु मैंने सब आयुस्‌‌ खो‌ई॥
बुरा मानना, दोष देखना, पर तुमने नहिं जाना।
मेरे स्वार्थ-सने कामोंको सदा प्रेममय माना॥
मत्सुखकारक विमल प्रेमको मैंने नित ठुकराया!
तब भी प्रेम तुम्हारा मैंने नित बढ़ता ही पाया॥
तुम-से तुम ही हो, अग-जगमें तुलना नहीं तुम्हारी।
मेरा अति सौभाग्य यही, जो मान रहे तुम प्यारी॥