Last modified on 4 अप्रैल 2014, at 14:56

जो परतन्त्र सदा प्रिय-सुख के / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:56, 4 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जो परतन्त्र सदा प्रिय-सुख के जो न कदापि स्वतन्त्र।
जिसका सुख प्रिय-सुख केवल, जो प्रिय-सुख का ही यन्त्र॥
जो प्रियमें संदेह रहित नित, प्रिय ही जिसका क्षेम।
प्रिय ही जिसका जीवन-जीवन, वही मधुरतम प्रेम॥