जो परतन्त्र सदा प्रिय-सुख के जो न कदापि स्वतन्त्र।
जिसका सुख प्रिय-सुख केवल, जो प्रिय-सुख का ही यन्त्र॥
जो प्रियमें संदेह रहित नित, प्रिय ही जिसका क्षेम।
प्रिय ही जिसका जीवन-जीवन, वही मधुरतम प्रेम॥
जो परतन्त्र सदा प्रिय-सुख के जो न कदापि स्वतन्त्र।
जिसका सुख प्रिय-सुख केवल, जो प्रिय-सुख का ही यन्त्र॥
जो प्रियमें संदेह रहित नित, प्रिय ही जिसका क्षेम।
प्रिय ही जिसका जीवन-जीवन, वही मधुरतम प्रेम॥