भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पकी हुई फसल का रंग / संजय चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:03, 4 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय चतुर्वेदी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पन्ना बनाया)
पकी हुई फसल का रंग
सोने जैसा नहीं होता
उसका रंग धूप जैसा होता है
पहाड़ काटकर
छोटी-छोटी सीढ़ियों पर दाने उगाए हैं आदमी ने
उसके बच्चों की तरह पत्थरों से पैदा हुई हैं खुशियाँ
लोहे ने सूरज से धूप खुरची है आदमी के लिए
पकी हुई फसल का रंग लोहे जैसा होता है
सूरज जब अगली दुनिया को रोशनी देने जाता है
पकी हुई फसल धूप-सी चमकती है सारी रात।