भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाथों में स्वतंत्रता की तरह / संजय चतुर्वेदी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:11, 4 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय चतुर्वेदी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चाहे वो घर में बन रही हो
या खुले मैदान में
या किसी बनती हुई इमारत के नीचे
पकते हुए आटे की महक
रास्ते रोक लेती है
ठग लेती है भरे पेट वालों को भी
भुला देती है फर्क अच्छे-बुरे का
औकात पर आ जाते हैं सारे खयाल

रोटी हाथों में स्वतंत्रता की तरह होती है
खुशकिस्मत हैं वे
जिनका रास्ता रोटियाँ रोक लेती हैं।