नित्य सर्वकारण कारण हरि सर्वशक्तिमत् सर्वाधार॥
सर्वाकर्षक घनीभूत चिन्मय आनन्दरूप अविकार॥
अखिल रसामृतमूर्ति, रसिक, रसराज मधुर-रस-पारावार।
महाभावरूपा राधा ह्लादिनि प्रत्यक्ष प्रेम-अवतार॥
दिव्य नित्य सौन्दर्यसुधानिधि शुचि माधुर्यरसािध अपार।
स्व-सुख वासना रहित परस्पर नित्य मधुर सुखके दातार॥
बनकर आस्वादक आस्वाद्याऽस्वादन करते रस-विस्तार।
स्थापित करते प्रेमराज्यका मंगलमय आदर्श उदार॥