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परदेसी है वो कोई भटकता है / देवी नांगरानी

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परदेसी है वो कोई भटकता है शहर में
गांवों को याद करके सिसकता है शहर में

मिलना बिछड़ना यह तो मुक़द्दर की बात है
किससे गिला करे वो झिझकता है शहर में

ज़ालिम चुरा के लाया है गुलशन की आबरू
वह गुल-फरोश सबको खटकता है शहर में

दीवारो-दर को कैसे बनाऊँ मैं राज़दाँ
ये प्यार मुश्क है जो महकता है शहर में

ख़्वाबों से घर सजाते हैं पलकों पे लोग क्यों
दिल जिनको याद करके हुमकता है शहर में

जिसको समय की आँधी उड़ा ले गई कभी
मेरा हसीन ख़्वाब चमकता है शहर में

‘देवी’ कुछ ऐसे रंग में करती है शायरी
हर शे’र बनके फूल महकता है शहर में.