भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सीप में मोती पलते हैं / देवी नांगरानी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:17, 9 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवी नांगरानी |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सीप में मोती पलते हैं ज्यूँ , रख सीने में दर्द सजाकर
रुसवा अपना प्यार न करना, पागल अपने अश्क बहा कर

घोर निराशा के अंधियारे, घेरें जब-जब तुझको, ऐ दिल
रौशन राहें कर ले अपनी, आशाओं की शम्अ जला कर

आँसू एक न ज़ाया करना, ये दौलत अनमोल है प्यारे
दिल के जख़्मों को सीना है, इस पानी को तार बनाकर

श्रद्धा और विश्वास ही तो हैं, इन्सानी जीवन के जौहर
मूँद के अपनी आँखे बंदें, प्रीतम का दीदार किया कर

नूर उसी इक रब का ‘देवी’, हम दोनों के अंदर बसता
देख ख़ुदा को मन ही मन में, क्या करना है बाहर जाकर.