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कोई आग दिल में लगा गया / देवी नांगरानी

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कोई आग दिल में लगा गया
कोई आग दिल की बुझा गया

वो जो कटघरे में खड़ा था ख़ुद
वही दोष मुझपे लगा गया

जो जड़ें थी पुख़्ता यक़ीन की
वो यक़ीन शक से हिला गया

वो जो बहका-बहका था झूठ से
उसे अब फरेब है भा गया

वो जो आशना था मेरा वही
मुझे रुस्वा करके चला गया

जो न झूठ सच को सका परख
वही ख़ुद को देखो ठगा गया

रहा पी के साकी न होश में
कोई ऐसा जाम पिला गया

रहे ज़ख़्म जिसके हरे-भरे
वही ज़ख़्म मेरे सुखा गया